ख़ामोश रहने में दम घुटता है
ख़ामोश रहने में दम घुटता है
और बोलने से ज़बां छीलती है
डर लगता है नंगे पाऊँ मुझे
कोई कब्र पाऊं तले हिलती है
परेशान हूँ ज़िन्दगी से
क्या पता कब कहाँ से मारेगी ज़िन्दगी
क्या पता कब कहाँ से मारेगी ज़िन्दगी
बस के मैं, ज़िन्दगी से डरता हूँ
बस के मैं, ज़िन्दगी से डरता हूँ
मौत का क्या है, एक बार मारेगी
धूल उड़ने लगती है जब शाम की
सब कांच भर जाते हैं गर्द से
मैं डरता हूँ, मैं डरता हूँ
दिल जब धड़कने से थकने लगे
नींद आने लगती है तब दर्द से
अनजान हूँ ज़िन्दगी से
क्या पता कब कहाँ से मारेगी ज़िन्दगी
क्या पता कब कहाँ से मारेगी ज़िन्दगी
बस के मैं ज़िन्दगी से डरता हूँ
बस के मैं ज़िन्दगी से डरता हूँ
मौत का क्या है
एक बार मारेगी
और बोलने से ज़बां छीलती है
डर लगता है नंगे पाऊँ मुझे
कोई कब्र पाऊं तले हिलती है
परेशान हूँ ज़िन्दगी से
क्या पता कब कहाँ से मारेगी ज़िन्दगी
क्या पता कब कहाँ से मारेगी ज़िन्दगी
बस के मैं, ज़िन्दगी से डरता हूँ
बस के मैं, ज़िन्दगी से डरता हूँ
मौत का क्या है, एक बार मारेगी
धूल उड़ने लगती है जब शाम की
सब कांच भर जाते हैं गर्द से
मैं डरता हूँ, मैं डरता हूँ
दिल जब धड़कने से थकने लगे
नींद आने लगती है तब दर्द से
अनजान हूँ ज़िन्दगी से
क्या पता कब कहाँ से मारेगी ज़िन्दगी
क्या पता कब कहाँ से मारेगी ज़िन्दगी
बस के मैं ज़िन्दगी से डरता हूँ
बस के मैं ज़िन्दगी से डरता हूँ
मौत का क्या है
एक बार मारेगी
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें
सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]
<< मुख्यपृष्ठ